Friday, 22 February 2019

नया साल तो बस हॉस्टल में होता था


वो भी क्या दिन थे जब 31 दिसम्बर की रात को कोई प्लान नहीं होता था क्यूंकि न जेब में पैसे होते थे और न शहर के डिस्क में stag एंट्री। होती थी तो बस कड़ाके की सर्दी , चार दोस्त, एक old monk और खूब सारे गानों पे बहुत सारा नाच । बस नाच , अच्छा या बुरा, न मायने रखता था न किसी को कोई फ़र्क़ पड़ता था दो पेग के बाद। फिर क्या हिंदी , अंग्रेजी और भोजपुरी गाने, सब माइकल जैक्सन नागिन डांस ही नाचते थे। बाहर खाने जाते थे तो किसी ढाबे पे जहाँ कढ़ाई चिकन और लच्छा परांठा मिलता हो । ये वो दिन थे जब चार बोतल वोडका, काम मेरा रोज का गाना नहीं motto था। रात भर दहला पकड़ होता था और बीच में सिगरेट से छल्ला बनाने का हुनर विकसित किया जाता था। आज कल के लौंडों की तरह टेबल बुक कराने जैसा मामला न था, न Zomato Gold जैसी कोई चीज़ थी लेकिन फिर भी सबसे अच्छी न्यू ईयर पार्टी तो कंगाली के दिनों में ही थी। आज मिल तो सब जाता है लेकिन रात के दो बजे तकिया के नीचे से निकाल के सुट्टा न मिलने पे दिसंबर की ठण्ड में बस स्टैंड तक बड़ी gold-flake लेने चलने वाला दोस्त नहीं मिलता। पूरा सिगरेट का डब्बा पर्स में है लेकिन पता नहीं उस चोरी की सिगरेट को पांच लोगों share करने पर मिलने वाली एक कश कैसे भारी पड़ती है।
ये वो दिन थे जब हफ़्तों बीत जाते थे बिना नहाये और deodorant भी उधार का होता था, नया साल तो बस हॉस्टल में होता था !
फ़ोन उठाओ और किसी दोस्त को बोलो Happy New Year, एडमिन भी दोस्त ही है वैसे !

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