लोग दुनिया को जानने की बात तो करते हैं, पर स्वयं को नहीं जानते. जानते ही नहीं, बल्कि जानना ही नहीं चाहते. खुद को जानना ही दुनिया की सबसे बड़ी नियामत है. जो खुद को नहीं जानता, वह भला दूसरों को कैसे जानेगा? दूसरों को भी जानने के लिए पहले खुद को जानना आवश्यक है. इसलिए बड़े महानुभाव गलत नहीं कह गए हैं कि जानने की शुरुआत खुद से करो.
एक महात्मा का द्वार किसी ने खटखटाया. महात्मा ने पूछा-कौन? उत्तर देने वाले ने अपना नाम बताया. महात्मा ने फिर पूछा कि क्यों आए हो? उत्तर मिला- खुद को जानने आया हूँ. महात्मा ने कहा-तुम ज्ञानी हो, तुम्हें ज्ञान की आवश्यकता नहीं. ऐसा कई लोगों के साथ हुआ. लोगों के मन में महात्मा के प्रति नाराजगी छाने लगी. एक बार एक व्यक्ति ने महात्मा का द्वार खटखटाया- महात्मा ने पूछा-कौन? उत्तर मिला-यही तो जानने आया हूँ कि मैं कौन हूँ. महात्मा ने कहा-चले आओ, तुम ही वह अज्ञानी हो, जिसे ज्ञान की आवश्यकता है? बाकी तो सब ज्ञानी थे.
इस तरह से शुरू होती है, जीवन की यात्रा. अपने आप को जानना बहुत आवश्यक है. जो खुद को नहीं जानता, वह किसी को भी जानने का दावा नहीं कर सकता. लोग झगड़ते हैं और कहते हैं- तू मुझे नहीं जानता कि मैं क्या-क्या कर सकता हूँ. इसके जवाब में सामने वाला भी यही कहता है. वास्तव में वे दोनों ही खुद को नहीं जानते. इसलिए ऐसा कहते हैं. आपने कभी जानने की कोशिश की कि खुदा और खुद में ज्यादा फ़र्क नहीं है. जिसने खुद को जान लिया, उसने खुदा को जान लिया. पुराणों में भी कहा गया है कि ईश्वर हमारे ही भीतर है. उसे ढूँढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं.
सवाल यह उठता है कि अपने आप को जाना कैसे जाए? सवाल कठिन है, पर उतना कठिन नहीं, जितना हम सोचते हैंे. ज़िंदगी में कई पल ऐसे आएँ होंगे, जब हमने अपने आप को मुसीबतों से घिरा पाया होगा. इन क्षणों में समाधान तो क्या दूर-दूर तक शांति भी दिखाई नहीं देती. यही क्षण होता है, खुद को पहचानने का. इंसान के लिए हर पल परीक्षा की घड़ी होती है. परेशानियाँ मनुष्य के भीतर की शक्तियों को पहचानने के लिए ही आती हैं. मुसीबतों के उन पलों को याद करें, तो आप पाएँगे कि आपने किस तरह उसका सामना किया था. एक-एक पल भारी पड़ रहा था. लेकिन आप उससे उबर गए. आज उन क्षणों को याद करते हुए शायद सिहर जाएँ. पर उस वक्त तो आप एक कुशल योद्धा थे, जिसने अपने पराक्रम से वह युद्ध जीत लिया.
वास्तव में मुसीबतें एक शेर की तरह होती हैं, जिसकी पूँछ में समाधान लटका होता है. लेकिन हम शेर की दहाड़ से ही इतने आतंकित हो जाते हैं कि समाधान की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता. लेकिन धीरे से जब हम यह सोचें कि अगर हम जीवित हैं, तो उसके पीछे कुछ न कुछ कारण है. यदि शेर ने हमें जीवित छोड़ दिया, तो निश्चित ही हमारे जीवन का कोई और उद्देश्य है. उस समय यदि हम शांति से उन परिस्थितियों को जानने का प्रयास करें, तो हम पाएँगे कि हमने उन क्षणों का साहस से मुकाबला किया. यही से हमें प्राप्त होता है आत्मबल और शुरू होता है खुद को जानने का सिलसिला.
हम याद करें उन पलों के साहस को. कैसी सूझबूझ का परिचय दिया था हमने. आज भी यदि मुसीबतें हमारे सामने आईं हैं, तो यह जान लीजिए कि वह हमें किसी परीक्षा के लिए तैयार करने के लिए आईं हैं. हमें उस परीक्षा में शामिल होना ही है. यानी खुद की शक्ति को पहचान कर हमें आगे बढ़ना है. जीवन इसी तरह आगे बढ़ता है.
यह बात हमेशा याद रखें कि जिसने परीक्षा में अधिक अंक लाएँ हैं, उन्हें और परीक्षाओं के लिए तैयार रहना है. जो फेल हो गए, उनके लिए कैसी परीक्षा और काहे की परीक्षा? याद रखें मेहनत का अंत केवल सफलता नहीं है, बल्कि सफलता के बाद एक और कड़ी मेहनत के लिए तैयार होना है. बस..
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