****उस दिन अगर IIT निकल गया होता तो !!!*****
sunday को अखबार पढ़ते पढ़ते , चाय की चुस्की पे ख्याल आया की अगर इंजीनियरिंग में IIT निकल गया होता तो आज मैं कहाँ होता। IIT से इंजीनियरिंग करके शायद आईआईएम से MBA करने जाता। किसी FMCG कंपनी में Branding कर रहा होता या शायद खुद की startup में लगा होता। onsite भी घूम आया होता, क्या पता USA के किसी बड़े शहर में अपने अपार्टमेंट में बैठा सोचता की quality ऑफ़ life भारत में नहीं है, बच्चों को global citizen बनाऊंगा वगैरह वगैरह ।
सवाल आया की आखिर मैं कहाँ हू और यहाँ तक कैसे आया ।
उत्तर प्रदेश के एक अव्वल दर्ज़े के कूड़ा कॉलेज से इंजीनियरिंग करी , सच पूछो तो कंप्यूटर साइंस में चार साल में एक भी कोड लिखना ही नहीं पड़ा। सब इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स वाले पढ़ते रहते थे, हम कैंटीन और फ़ोटोस्टेट से ही पास हो जाते थे। लोग कहते थे की CS और IT are the art side of engineering , माना तो नहीं लेकिन लगने हमे भी लगा था। ये बात सही भी है की कंप्यूटर साइंस की इंजीनियरिंग की पढ़ाई आसान है लेकिन ये भी उतना ही सच है की कंप्यूटर साइंस में ही हर ३ साल बाद relevant रहने के लिए नयी language भी सीखनी पड़ती है branches को नहीं करना होता (काफी हद तक)।
कॉलेज से प्लेसमेंट नहीं हुआ था, नॉएडा में पैसे दे के , जी हाँ पैसे दे के, एक कंपनी में Java development करता था। 6 महीने की paid जॉब के बाद उसको बोला की कुछ तनख्वाह दे दो तो उसने बोला कल आके ले लेना। अगले दिन जब pay स्लिप दी तो जितनी सैलरी महीने के 26 दिन की बनी थी, ४ sunday की छुट्टी की काट ली गयी थी और Net Pay 'Zero' लिखा था। आज भी keyboard पे ये टाइप करते करते रोए खड़े हो गए हैं। उस दिन बेहिसाब रोया था रजनीगंधा चौक पे खड़े होके।
डेढ़ साल हो चुके थे, कंपनी वालों ने पता नहीं काम देख के, या तरस खा के 1 .5 लाख सैलरी कर दी थी। नॉएडा में ४ लोगों के साथ एक रूम में PG में रहते थे। एक दिन गुडगाँव की एक कंपनी से कॉल आया, नाम था IBM, इंटरव्यू देने गए तो पता लगा ऑफ रोल पोजीशन है , सोचा चलो कम से कम IBM के ऑफिस में बैठेंगे। सब दोस्तों को , मम्मी पापा को बता दिया की IBM ज्वाइन की है। एक महीने सब अच्छा चला , खूब काम कराया गया , हमने भी जी जान से काम किया , एक दिन ऑफिस गए , बाहर घुमटी में सुट्टा मारा, ऊपर जा के access card स्वाइप किया तो नहीं चला, दोबारा किया, फिर नहीं चला। पास बैठा security गार्ड हसने लगा, बोला की अब नहीं चलेगा, दो दिन बाद आके अपनी drawer का सामान लेते जाना। किसी तरहं खुद को बटोर के वहां से बाहर तक आया और सड़क पे बैठ के घंटो रोया। उस दिन पता लगा की दुःख से भी बड़ा emotion बेइज़्ज़ती है। फिर रोते रोते घर फ़ोन किया , बताया की मम्मी निकाल दिया, और कहते कहते फिर रोने लगा। हमेशा याद रखना , बहुत दुःख में घर वालों को कभी फ़ोन मत करना, वो परेशां हो जाते हैं और उससे भी ज्यादा असहाय।
कुछ दिन और बेरोज़गार रहे फिर, एक recruitment ड्राइव में गुडगाँव की एक कंपनी में सॉफ्टवेयर डेवलपर बन गए। दो साल होने को थे और पैकेज कम्भख्त अभी भी डेढ़ लाख। ये वो दिन थे जब को पूछता था की कहाँ काम करते हो तो कहता था गुडगाँव में , जब वो दोबारा पूछता था की कहाँ काम करते हो तो फिर से कह देता है Java प्लेटफार्म पे। एक दिन एक कंपनी से कॉल आया , सारे round निकाल के HR राउंड में पहुंचे। HR ने पूछा current CTC , हम बोले 1. 5 लाख , वो बोली expected CTC , हम बोले 3 लाख , वो बोली १००% hike मांग रहे हो , तो हमने कहा mam दो साल से Java डेवलपमेंट कर रहा हू , मार्किट रेट के हिसाब से इतना तो मिलना ही चाहिए। वो हसी और बोली , हम associate सॉफ्टवेयर developer को 4. 5 लाख कम नहीं दे सकते , इतना तुम deserve करते हो। बाहर निकल के खुद को चुटकी काटी , उस दिन भी खूब रोया था लेकिन इन आंसुओं में कुछ अलग था ।
आज भी उसी कंपनी में हू , Architect हू , दो साल लंदन क्लाइंट location में रह लिया, लेकिन माँ बाप से दूर अच्छा नहीं लगा तो वापिस आ गया। टीम में कई बच्चे IIT के हैं जो सब मुझे रिपोर्ट करते हैं। रोज़ ऑफिस के रस्ते में वो सड़क भी आती है जिनमे बैठ के घंटो रोया था और खुद को समझा लेता हु की वो भी रास्ता था, ये भी रास्ता है. मंज़िल यहाँ नहीं है। कल लंच में एक टीम member बोल पड़ा , AI और Machine Learning आ जायेगा तो क्या करेंगे, तब नौकरी कैसे ढूंढेगे। मै मुस्कुराया और बोला की कुछ तो कर ही लेंगे।
चाय ख़तम हो गयी थी और मैं सामने टंगे कैलेंडर में कृष्ण भगवान को देख के सोच रहा था कि अच्छा हुआ जो उस दिन IIT नहीं निकला।
अच्छा हुआ जो IIT नहीं निकला .....
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