Saturday, 24 March 2018

******Theory of Relative Break-Up************

आज कल हर चीज़ relative हो गयी है। physics में relative velocity के concept जैसी …… यहाँ तक की breakup भी
काफी समय से कोशिश करने के बाद भी जब लगा की अब नहीं हो पा रहा है तो एक दिन "'Its over" बोल दिया। सोचा था ये ऐसा होगा की जैसे desktop से Shift -delete करने जैसा। पूरी file एक बार में गायब , ना सुराग , ना सबूत।
लेकिन ऐसा था नहीं , आज कल की ज़िंदगी में breakup absolute नहीं रह गए , वो relative हो गए है। आप शहर बदल सकते हो , नौकरी बदल सकते हो लेकिन वो जाते नहीं , फेसबुक से उनको तो unfriend कर सकते हो लेकिन क्लास के 58 mutual friends की वजह से वो timeline में आ ही जाते हैं | आप reference फ्रेम बदल सकते है , force के component नहीं.
Whatsapp group हो या instagram ना चाहते हुए भी आपको उनका हर टैग आ ही जाता है , मैंने शहर बदल लिया , नौकरी बदल ली , number तक बदल लिया लेकिन कुछ फाइल्स Operating system ही corrupt कर देती है और अगर system format भी कर दो तो कुछ नीछ दोस्त बैकअप लेकर घूमते रहते हैं , तुरंत CD लगा के फिर upload कर देते हैं , दारु शायद आज के युग की time मशीन है। पीते ही फिर उसी दौर में पहुँच जाते हैं जहाँ आज भी आतिफ और मै साथ साथ गाते है , " गुलाबी आँखें जो तेरी देखी , शराबी ये दिल हो गया ". आज भी उस अनजान शहर की गलियों में उसको ढूंढता मैं और भगवान की की तरह प्रकट होती वो याद है , उसका चेहरा अब ज़ेहन में धुंधला गया है कुछ वैसे ही जैसे 19 का पहाड़ा , धुन में गाऊंगा तो शायद आज भी याद आ जाए
Breakup एक शब्द नहीं है , एक जज़्बात है , एक पूरा वक़्त है , मेरा एक हिस्सा है , break up, velocity की तरह relative होते हैं . "its over " और "I finally moved on" में एक बहुत लम्बा वक़्त होता है . बहुत लम्बा।
कुछ घाव वक़्त नहीं भर पाता , बस उनके साथ रहने की आदत डाल देता है

****** I am an Engineer and I work in a Bank******

हाँ इंजिनीरिंग के बाद मैं बैंक में काम करता हू , तो तुम्हारे बाप का क्या जाता है। हाँ कटवारिया सराय में की थी NTPC और BHEL की तैयारी , नहीं निकला , कुछ दिन मास्टर बनने का भी सोचा था लेकिन वहां तो सिर्फ boring और पढ़ीस जाते हैं तो उन्होंने भी नहीं लिया ,कॉलेज का प्लेसमेंट शुन्य बटा सन्नाटा है तो बैंगलोर भी गया था walk -in पे , नहीं हुआ , C++ पूछ रहे थे और मैं ठहरा इलेक्ट्रिकल का लौंडा (वैसे इलेक्ट्रिकल भी पूछ लेते तो क्या ही बता पाता) . समझ आ गया की भाई कुछ नहीं रखा है इस प्राइवेट नौकरी में , पतली गली से कट लिया , आज सरकारी बैंक में PO हू , हाँ पोस्टिंग महाराष्ट्र के अकोला में हुई है लेकिन नेक्स्ट पोस्टिंग में पहुँच जाऊंगा सीतापुर के पास लखीमपुरखीरी की किसी ब्रांच में और तुम फुनसुनक वांगडू समझने वालों रहना 1BHK में दिल्ली , मुंबई और बैंगलोर के। जीतते बड़े घर होते हैं न तुम्हारे शहरों में , उतने में तो हम UP वाले कूलर रखते हैं , और हाँ क्या कहते हो तुम 'Monotonous जॉब है हमारी " , तुम कौन से National Geographic channel में काम कर रहे हो बे , TCS , Accenture और wipro में ओन-साइट के मोह में घिस रहे हो , ये जन धन योजना से pressure आ गया है लेकिन गुरु तुम्हारी तरह 16 घंटे वाला काम नहीं करता हू , और हाँ ये जो alternate saturday Off घोषित हुआ है न , इसका मतलब पता है - saturday 'छुट्टी' रहेगी। कोई माई का लाल बुला के दिखा दे alternate saturday , बॉस छोडो , रघुराम राजन भी नहीं बुला सकता , तुम्हारी तरह saturday को work from home नहीं करते हम , खुद को ये सांत्वना भी नहीं देते की घर में गर्मी है तो आ गए AC में मुफ्त की चाय पीने।
क्या बोलते हो , technical पढ़ाई करके बैंक में ही जाना था तो बी टेक क्यों किया , भाई बात ऐसी है की बीएससी में नही हो रहा था , इंजीनियरिंग में हो गया , और रही बात non -technical काम की तो सालों तुम कौन सा Operating System बना दिए हो बे , Cut -Copy -Paste करते हो सॉफ्टवेयर companies में और खुद को टेक्निकल कहते हो। भाई साहब , इंजीनिरिंग डिग्री नहीं है , एक सोचने का तरीका है , इंजीनियरिंग का मूल सिद्धांत पता है ,"Optimum utilization of Resources" . चाहे advertising हो या politics , Management हो या बैंकिंग हम जहाँ भी जाते हैं न , वहां कुछ थोड़ा सा innovation करना, थोड़ा सा काम आसान करना भी भी इंजीनियरिंग है , लोग मेरे बैंक में cash deposit के लिए एक घंटे line में खड़े रहते थे , उनको टोकन देके बैठने देना भी इंजीनियरिंग है.
ऐसा नहीं है की सब अच्छा है,ऐसा नहीं है की मै ambitious नहीं हू , लेकिन जब तुमने सीतापुर और मुंबई में मुंबई को चुना था तो मैंने सीतापुर चुना है, मैं माँ -बाप से अभी skype पे बात करता हु लेकिन अगले साल घर में बैठ के गप्पे मारूंगा , फिर जब किसी बैंक वाले इंजीनियर का मज़ाक उड़ाना तो सोचना की क्या कह सकते हो ये बात १००% confidence से
फिर कभी ये मत बोलना की इंजीनियरिंग करके बैंक में क्यों......

टीचर्स डे

उम्र - बस इत्ती कि स्कूल और मम्मी-पापा के नाम की स्पेलिंग याद हो पायी है.
बहाना - पेट में दर्द था.
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उम्र - इतनी कि स्कूल जाने के लिए साइकिल और साथ ले जाने के लिए कुछ रूपये मिलने लगे थे.
बहाना - लाइट नहीं आ रही थी.
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उम्र - इतनी कि शर्ट के कॉलर का बटन बंद होना और बाज़ू नीचे रहनी भूल चुकी थीं.
बहाना - प्रोजेक्ट सबमिट करना था.
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उम्र - इतनी कि दोस्तों के साथ मनाली और देहरादून अकेले घूम लिया था और कॉलेज के बगल में गुमटी पर खाता चलने लगा था.
बहाना - कोई नहीं. क्लास कौन जाता है?
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उम्र के पड़ाव बीतते जाते हैं, होमवर्क न पूरा होने के बहाने बदलते जाते हैं लेकिन वो एक शख्स हमेशा कॉमन रहता है. सब्जेक्ट बदलते हैं, नाम बदलते हैं, बोल-चाल बदल जाती है, खड़ूस होने की सीमा बढ़ या घट जाती है लेकिन टीचर वहीँ मौजूद रहता है. अपने डस्टर और चाक के डब्बे के साथ.
सूरदास ने कहा था कि दुष्ट, काले कम्बल के समान होते हैं जिनपर दूसरा कोई रंग नहीं चढ़ता. दरअसल उनके समय में चाक और डस्टर का ईज़ाद नहीं हुआ था वरना देखते वो भी कि कैसे दीवाल में जड़े एक काले बोर्ड पे चाक घिस घिस के हम जैसे दुष्टों की नइय्या पार लगाने वाले लोग भी हैं. वो लोग जिन्हें हम सर या मैडम कहते हैं.
आज टीचर्स डे है. स्कूल में होते तो क्लास सजाते. जियोग्राफी वाली मैडम के लिए कुर्सी ठीक पंखे के नीचे रक्खी थी और पंखे के ऊपर चाँद-सितारे, फूल, रंगीन काग़ज़ के टुकड़े रक्खे थे और उनके बैठते ही पंखा चलाया गया था और वो सारा मलबा उनपर उड़ता हुआ आ गिरा था. बस पांच से छः सेकंड का मजा था लेकिन वो गजब ख़ुश हो गयीं थीं. क्लास टीचर थीं वो हमारी. पूरी क्लास को एक-एक पेटीज़ और साथ में एक फ़्रूटी का पैकेट दिलवाया था. मेरी बेस्ट-फ्रेंड एक लड़की थी जिसके साथ ही मैं घर वापस जाता था. उस दिन घर जाते वक़्त पूरे रास्ते हम यही बात कर रहे थे कि मैम हल्का सा रोईं थीं या बस हमको ही ऐसा लग रहा था. वैसे आज सोचो तो लगता है कि हमने भी किसी ज़माने में राहुल गाँधी वाली हरकतें की हैं.
कुछ दिन पहले वो बैंक में काम करने वाली पोस्ट में किसी ने लिखा था कि 'जो कुछ नहीं कर पाते फैकल्टी बन जाते हैं'. मैं ऐसे लोगों से मिला और पढ़ा हूँ जिन्होनें बहुत कुछ किया और फैकल्टी बन गए और इसके बाद भी बहुत कुछ करते रहे. हमें तमीज़ सिखाना भी उनके 'बहुत कुछ' करने का एक हिस्सा था. जो भी है, लेक्चर नहीं देंगे, वो काम फैकल्टी का होता है. हम तो बस इतना ही कह रहे हैं कि जो कुछ नहीं कर पाने वालों को थोड़ा-बहुत कर पाने लायक बना देते हैं वो ही फैकल्टी बन पाते हैं.
हमको दो मिनट के लिए गेस्ट-फैकल्टी मान लो और जो कहते हैं सुनो. अपने टीचर्स का नंबर निकालो. न नंबर मिले तो फेसबुक पे ढूंढो. ई-मेल आई-डी तो होगा ही. कॉल करो, वाल पे लिखो, मेसेज करो, मेल करो, और उनको थैंक-यू और सॉरी दोनों ही बोलो. थैंक यू इसलिए कि जिस भी लायक हो, उसका एक बहुत बड़ा श्रेय उन्हें भी जाता है और सॉरी इसलिए कि अक्सर जब वो तुम्हें एक बेहतर इंसान बनाने की कोशिश में लगे हुए थे, उस वक़्त तुम अपने कॉलर के बटन खोले और शर्ट की बाजू चढ़ाये यही सोच रहे थे कि 'जिसे कुछ नहीं करना आता वो फैकल्टी बन जाता है.'

~एक इंजीनियर की खब्त

ये जो लड़कियाँ होती हैं न, ये internet browser सी होती हैं. मैं इंजीनियर हूँ इसलिए आदत से मजबूर हूँ. इससे बेहतर example सूझ नहीं रहा. Internet browser ऐसे कि जब जो जी में आया, वो पेज visit किया और जब जी में आया, tab close कर एक नया tab खोल लिया. अक्सर जब कुछ ऐसे पेज खुल जाते हैं जिनके link वो और देर अपने system में नहीं रखना चाहतीं, तो history erase कर देतीं हैं.
लड़के वो होते हैं जो इन browser से wallpapers डाउनलोड करते हैं. अक्सर कई wallpaper होते हैं जिन्हें हम अपनी hard-disk में C://Windows/System32 में Data नाम का फोल्डर बना कर रखते हैं. पर गाहे-बगाहे, एक wallpaper हम ऐसा भी डाउनलोड कर लेते हैं जिसे हमने अपना deaktop wallpaper बनाने का सपना संजोया होता है. यकीन मानिये उस दिन के बाद से System32 भी एक क्लिक को तरसता है और बस वो उस एक डाउनलोड की हुई JPG फ़ाइल को घंटो Picture Gallery में preview करते हुए एक असीमित deadlock में चला जाता है. रंज सिर्फ़ इस बात का है कि इस desktop wallpaper की जगह ले सकने वाला wallpaper न ही किसी संता-बंता के बस की बात मालूम देता है और न ही google images की.
कल रात अपने desktop wallpaper से फ़ोन पर बात हुई. आखिरी बार शायद. मालूम चला कि browser history काफ़ी दिन हुए erase की जा चुकी है. मैंने लाख system restore to previous restore point का इस्तेमाल करना चाहा पर हर बार ये task मेरे admin rights से बाहर मिला. मैं अपने system से account को log off तो कर चुका हूँ पर sleep mode में नहीं रख पा रहा. Improper shut down में हार्ड डिस्क corrupt होने का खतरा है. मुसीबत से निबटने को कोई सिस्टम इंजीनियर हो तो ज़रूर इत्तेला करें.

"Start up India, Stand Up India " का सपना

Dear Modi Sir,
आप US में silicon valley में tech giants से मिल रहे हैं और यहाँ मैं घर से कुछ 1800 km दूर अपने 1 रूम kitchen में अपने एक बिहारी दोस्त के साथ रहता हू। क्या है न यहाँ बैंगलोर में UP -बिहार सब एक होते हैं - 'North Indians'. यही बोलते हैं हमे , घर से दूर यहाँ मैं 'सॉफ्टवेयर developer who works on java platform' , मेरा बिहारी दोस्त एक टेलीकॉम कंपनी में Tester है। घर वालों से मैं skype पे बात कर लेता हूँ (लखनऊ में नेताजी का सुशासन जो है ) , वो नहीं कर पाता , छपरा में 2G चल पाये , वोई बहुत है , आज भी रात को लाइट आँख -मिचोली खेलती है ( मेरा रूम मेट यादव है , कहता है लालू ने यादवों के लिए बहुत किआ है छपरा में) , खैर मेरे जैसे बहुत सारे लोग UP और बिहार में अपने घर वालों से दूर रहते हैं , शायद इसके लिए नेता ज़िम्मेदार हैं लेकिन उन नेताओं को चुनने के लिए हम भी तो ज़िम्मेदार हैं , फिर एक नेता 'special status ' मांगने को चुनावी मुद्दा बनाता है मतलब पहले state की जनता खुद बेवकूफ सरकार चुने फिर पूरे देश की taxpayer जनता उसको चंदा दे सुधरने के लिए , मैं politics की बात क्यों कर रहा हूँ , इसका JAVA से क्या सम्बन्ध , अजी सम्बन्ध है , बहुत बड़ा सम्बन्ध है - मराठी TL जब गणपति पे मराठी team members को छुट्टी दे देता है और Chhath की छुट्टी project deadline बोल के cancel कर देता है तो politics ज़ेहन में आती है , south indian project lead जब कहता है की दिल्ली में तो बस rape होते हैं तो मन करता है की पराठे वाली गली की उस कढ़ाई में इसे ही तल दू लेकिन अगर मैं पलट के जवाब देता हू तो मैं बुरा नहीं बनता , पूरा UP -बिहार 'कमीना' हो जाता है , ये बैंगलोर और पुणे में real estate के दाम हम ही ने बढ़ाये हैं लेकिन आज भी कोई ठाकरे कभी भी पीट जाता है, घर से दूर रह के नौकरी कीजिये, पॉलिटिक्स में रूचि आ ही जाएगी साहब
फिर आज मोदी बोलेंगे की कैसे साँपों का देश अब mouse से जाना जाता है लेकिन कैसे पूरा UP - बिहार अपने ही देश में refugee बना बैठा है, इस पर भी सुन्ना चाहता है आपका एक 'भक्त' .इन सभी companies जिनके CEOs से आप मिलने जा रहे हैं उनके R&D centres यहीं हैं लेकिन क्यों रोज़ १२-१४ घंटे काम करके हमे इत्ती सैलरी दी जा रही है की हम बस अगले दिन काम पे ही आ पाएं इस पर भी कुछ सुन्ना चाहता हु Sir, खुद billing घंटों की हमे TDS काट के इतना भी नहीं मिलता की टैक्स pay करना पड़े और उसपे दिवाली की छुट्टी approve कराने के लिए reservation खुलने के 15 दिन पहले से काम ज्यादा करके मैनेजर की चापलूसी करनी पड़ती है वो अलग। ये सबसे तंग आके कुछ दोस्त MBA चले जाते है और कुछ start up खोल लेते हैं।
weekend to weekend ज़िंदगी जी रहे हैं लाखों सॉफ्टवेयर इंजीनियर मोदी सर, बहुत मेहनत करते हैं और भी पूरा कआपका "Start up India, Stand Up India " का सपना रेंगे , कुछ तो बात होगी ही जो आज सारी बड़ी कंपनीज़ के CEOs भारतीय हैं, बस सर हमारे UP - बिहार में भी IT पार्क्स खोलिए , Infosys खुर्जा , TCS संभल, Mckenzie मथुरा , Adobe आगरा और Google Gorakhpur देखने का बड़ा मन है
और हाँ ये mail saturday night को ऑफिस में night shift में बैठा लिख रहा हू
Thanks and Regards
सॉफ्टवेयर इंजीनियर
Note: This mail is confidential and property of "दो कौड़ी की MNC" and don't print unless very necessary

मुहल्ले वाला पढ़ने में सबसे तेज़ लड़का ki story

मुहल्ले का वो लड़का ,
जो पढ़ने में सबसे तेज़ था,
ग्यारहवीं क्लास में आते आते ,
चश्मा पहनने लगा था ,
इंजीनियरिंग में एडमिशन के लिए ,
दिन रात एक करता था ,
coaching वाली लड़की जो ,
Irodov और H C verma की किताब में ,
friction वाले सवाल की तरह अटक गयी थी ,
उस लड़की को दूर भगाता था ,
बस एक बार इंजीनियर बन जाये ,
तो लड़की के घर जाकर ,
हीरो माफ़िक हाथ मांग लेगा उसका ,
अच्छे कॉलेज से इंजीनियरिंग का कुल
इतना ही मतलब समझता था ,
लड़का इंजीनियर बन गया ,
सुना है बड़ी कंपनी में नौकरी भी करता है ,
कंपनी में और भी ना जाने कितने मुहल्लों के,
पढ़ने में सबसे तेज़ लड़के हैं ,
कंपनी जैसे हजारों मुहल्ले निगल जाती हो ,
लड़के के मुहल्ले के कई लड़के ,
उसके जैसा होना चाहते हैं ,
चश्में का नंबर बढ़ गया है ,
अच्छे मेहंगे चश्में से भी वो ,
coaching वाली लड़की साफ नहीं दिखती ,
वो ऐसे ही किसी दूसरे मुहल्ले के ,
पढ़ने में सबसे तेज़ लड़के की बीवी है ,
लड़का जिंदगी से हरा नहीं है ,
उदास भी नहीं है ,
घूमता-फिरता है ,
कार्ड swipe करता है ,
जैसे टाइम से सुबह स्कूल जाता था ,
वैसे ही टाइम से अब ऑफिस जाता है ,
हाँ जैसे टाइम से स्कूल से आता था ,
वैसे टाइम से ऑफिस से नहीं आता ,
स्कूल का होमवर्क करता था ,
अब ऑफिस का काम घर लाता है ,
1st मई की छुट्टी के लिए बड़ा ही excited है ,
ऑफिस में सबसे बहस करता है ,
कि “हम मजदूर थोड़े हैं “
उसे बस छुट्टी से मतलब है ,
रोज़ “चूर” होकर होकर लौटता है ,
कभी थककर कभी बिना थके ,
शाम को घर आता है ,
खाना खाकर टीवी देखकर,
किसी न्यूज़ चैनल की TRP बढ़ाता है ,
अगले दिन आराम से दिन के 12 बजे ,
पापा के फ़ोन से उठता है ,
हँस के बताता है
“आज छुट्टी है “
पापा को समझाता भी है
“वो मजदूर थोड़े है “
फोन काटने के बाद ,
शीशे में खुद को देखकर ब्रश करता है ,
एक बार मुँह धोता है ,
और फेसवाश अपने चेहरे पर रगड़ कर ,
ऑफिस वाले चेहरे की क्रीम लगाता है ,
एक बार फिर ध्यान से देखता है ,
शीशे वाले चेहरे को और बुदबुदाता है ,
“मैं मजदूर थोड़े हूँ ,
मैं मजबूर थोड़े हूँ “
पता नहीं एक दम से क्या याद आता है उसको ,
और मुहल्ले वाला पढ़ने में सबसे तेज़ लड़का ,
दुबारा मुँह धो लेता है.

Welcome to a new Life.....

*******बहुत बहुत मुबारक अगर आज कम नंबर आये हैं ********
सीबीएसई की बारहवीं के रिजल्ट आ गए हैं और अगर आज घर पे आपकी तेरहवीं मन रही है तो बहुत बहुत मुबारक।
क्या सोच रहे हो , रिश्तेदारों की तरह पेज एडमिन भी मज़ाक उड़ा रहा है , नहीं भाई , देखो ज्यादातर पता तो था ही तुम्हे की क्या आनेवाला है, किसी को बोलते नहीं थे लेकिन अंदर ही अंदर अंदाज़ा तो रहता ही है, हाँ कुछ दिन acting करो रोने धोने की, career discuss करो मामा के लड़कों से , एक दो टाइम dinner भी skip कर देना , लेकिन जब अकेले होना तो जी भर के खुद को शाबाशी देना , आसान थोड़े है सीबीएसई में कम नंबर लाना , खाली कॉपी भी छोड़ दो तो 33 दे देते हैं और कहीं पैर से लिख आओ तो भी 75% आ जाते हैं , इसलिए बहुत मेहनत और लगन से लाए हो ये मार्क्स।
खुश इसलिए होना कि अब कोई नहीं कहेगा टॉप करने को , टॉप करना दूर पास हो जाओगे न, तो भी तारीफ होगी , benchmark कोहली का बनाते तो तुलना भी मोहल्ले के सचिन से होगी, आज जब रविन्द्र जडेजा बन ही गए हो तो फिर क्या डरना , यहाँ से अच्छा ही करोगे , कोई IIT जाने के लिए नहीं बोलेगा , UPTU आ जाओ, बुरा है लेकिन अब हर कोई IIT में ही तो नहीं जा सकता , Resnic Halliday और HC वर्मा के बाहर भी एक दुनिया है , आओ इंजीनियरिंग करने , मज़ा आएगा, UPTU आ रहे हो तो और भी अच्छा है , ठोकर लगेगी, फिर खड़े होना , फिर लगेगी , फिर खड़े होंगे , फिर जब ;लगेगी तब तक आदत लग गई होगी, उठने में दर्द कम होगा, expectation word आज चला गया है , यहाँ से जो करोगे अपने लिए करोगे , अब तुमने साबित कर ही दिया है की PCM नहीं आती है तो क्यों न NIFT try करो - अपने अमेठी में खुल गया है, होटल मैनेजमेंट करो , Law के एक से एक integrated प्रोग्राम्स हैं, filmmaking करो, कुछ भी करो , अभी भी नहीं समझ रहा है की क्या करो तो कोटा जाओ और कोचिंग करो....12th पास लोगों का हरिद्वार है वो!
यकीं मानो आज ये पढ़ के लगेगा की क्या romantic writer है , यहाँ साल बर्बाद होता दिख रहा है और ये struggle में रोमांस ढूंढ रहा है, पांच साल बाद दिल्ली, मुंबई या बैंगलोर में जब सुनोगे की CBSE का 12th का रिजल्ट आया है सोचोगे की वो सही ही कहता था..........
Welcome to a new Life.....

कहानियां लिखते है .....हम ENGINEERING LIFE की

कहानियां लिखते है हम 
जेब की कड़की की
क्लास में first row में बैठ बाल संवारती उस लड़की की
सब subjects खुद में समेटी Quantum की 
लड़कियों को देख घूमती गर्दन के momentum की
कहानियां लिखते है हम
मेस के उस टुच्चे खाने की
वो कॉलेज के पास वाले मयखाने की
फर्स्ट ईयर की उस Day scholar की
मेरे हॉस्टल के सबसे अच्छे baller की
कहानियां लिखते है हम
Faculty से GATE के exam में मिलने की
उसी Faculty से कॉलेज gate पे मिलने की
वो दिवाली के टिकट में लड़की के साथ reservation कराने की
उसकी waiting list 
को confirmation कराने की
उस पैसे देकर खरीदे Final Year project की
उस सीनियर के project को नाम बदल के जमा कर देने की
कहानियां लिखते है .....हम U.P.T.U. की

EK Dost ki story " time lagat hai but success milta hai"

                                               ****उस दिन अगर IIT निकल गया होता तो !!!*****


sunday को अखबार पढ़ते पढ़ते , चाय की चुस्की पे ख्याल आया की अगर इंजीनियरिंग में IIT निकल गया होता तो आज मैं कहाँ होता। IIT से इंजीनियरिंग करके शायद आईआईएम से MBA करने जाता। किसी FMCG कंपनी में Branding कर रहा होता या शायद खुद की startup में लगा होता। onsite भी घूम आया होता, क्या पता USA के किसी बड़े शहर में अपने अपार्टमेंट में बैठा सोचता की quality ऑफ़ life भारत में नहीं है, बच्चों को global citizen बनाऊंगा वगैरह वगैरह ।
सवाल आया की आखिर मैं कहाँ हू और यहाँ तक कैसे आया ।
उत्तर प्रदेश के एक अव्वल दर्ज़े के कूड़ा कॉलेज से इंजीनियरिंग करी , सच पूछो तो कंप्यूटर साइंस में चार साल में एक भी कोड लिखना ही नहीं पड़ा। सब इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स वाले पढ़ते रहते थे, हम कैंटीन और फ़ोटोस्टेट से ही पास हो जाते थे। लोग कहते थे की CS और IT are the art side of engineering , माना तो नहीं लेकिन लगने हमे भी लगा था। ये बात सही भी है की कंप्यूटर साइंस की इंजीनियरिंग की पढ़ाई आसान है लेकिन ये भी उतना ही सच है की कंप्यूटर साइंस में ही हर ३ साल बाद relevant रहने के लिए नयी language भी सीखनी पड़ती है branches को नहीं करना होता (काफी हद तक)।
कॉलेज से प्लेसमेंट नहीं हुआ था, नॉएडा में पैसे दे के , जी हाँ पैसे दे के, एक कंपनी में Java development करता था। 6 महीने की paid जॉब के बाद उसको बोला की कुछ तनख्वाह दे दो तो उसने बोला कल आके ले लेना। अगले दिन जब pay स्लिप दी तो जितनी सैलरी महीने के 26 दिन की बनी थी, ४ sunday की छुट्टी की काट ली गयी थी और Net Pay 'Zero' लिखा था। आज भी keyboard पे ये टाइप करते करते रोए खड़े हो गए हैं। उस दिन बेहिसाब रोया था रजनीगंधा चौक पे खड़े होके।
डेढ़ साल हो चुके थे, कंपनी वालों ने पता नहीं काम देख के, या तरस खा के 1 .5 लाख सैलरी कर दी थी। नॉएडा में ४ लोगों के साथ एक रूम में PG में रहते थे। एक दिन गुडगाँव की एक कंपनी से कॉल आया, नाम था IBM, इंटरव्यू देने गए तो पता लगा ऑफ रोल पोजीशन है , सोचा चलो कम से कम IBM के ऑफिस में बैठेंगे। सब दोस्तों को , मम्मी पापा को बता दिया की IBM ज्वाइन की है। एक महीने सब अच्छा चला , खूब काम कराया गया , हमने भी जी जान से काम किया , एक दिन ऑफिस गए , बाहर घुमटी में सुट्टा मारा, ऊपर जा के access card स्वाइप किया तो नहीं चला, दोबारा किया, फिर नहीं चला। पास बैठा security गार्ड हसने लगा, बोला की अब नहीं चलेगा, दो दिन बाद आके अपनी drawer का सामान लेते जाना। किसी तरहं खुद को बटोर के वहां से बाहर तक आया और सड़क पे बैठ के घंटो रोया। उस दिन पता लगा की दुःख से भी बड़ा emotion बेइज़्ज़ती है। फिर रोते रोते घर फ़ोन किया , बताया की मम्मी निकाल दिया, और कहते कहते फिर रोने लगा। हमेशा याद रखना , बहुत दुःख में घर वालों को कभी फ़ोन मत करना, वो परेशां हो जाते हैं और उससे भी ज्यादा असहाय।
कुछ दिन और बेरोज़गार रहे फिर, एक recruitment ड्राइव में गुडगाँव की एक कंपनी में सॉफ्टवेयर डेवलपर बन गए। दो साल होने को थे और पैकेज कम्भख्त अभी भी डेढ़ लाख। ये वो दिन थे जब को पूछता था की कहाँ काम करते हो तो कहता था गुडगाँव में , जब वो दोबारा पूछता था की कहाँ काम करते हो तो फिर से कह देता है Java प्लेटफार्म पे। एक दिन एक कंपनी से कॉल आया , सारे round निकाल के HR राउंड में पहुंचे। HR ने पूछा current CTC , हम बोले 1. 5 लाख , वो बोली expected CTC , हम बोले 3 लाख , वो बोली १००% hike मांग रहे हो , तो हमने कहा mam दो साल से Java डेवलपमेंट कर रहा हू , मार्किट रेट के हिसाब से इतना तो मिलना ही चाहिए। वो हसी और बोली , हम associate सॉफ्टवेयर developer को 4. 5 लाख कम नहीं दे सकते , इतना तुम deserve करते हो। बाहर निकल के खुद को चुटकी काटी , उस दिन भी खूब रोया था लेकिन इन आंसुओं में कुछ अलग था ।
आज भी उसी कंपनी में हू , Architect हू , दो साल लंदन क्लाइंट location में रह लिया, लेकिन माँ बाप से दूर अच्छा नहीं लगा तो वापिस आ गया। टीम में कई बच्चे IIT के हैं जो सब मुझे रिपोर्ट करते हैं। रोज़ ऑफिस के रस्ते में वो सड़क भी आती है जिनमे बैठ के घंटो रोया था और खुद को समझा लेता हु की वो भी रास्ता था, ये भी रास्ता है. मंज़िल यहाँ नहीं है। कल लंच में एक टीम member बोल पड़ा , AI और Machine Learning आ जायेगा तो क्या करेंगे, तब नौकरी कैसे ढूंढेगे। मै मुस्कुराया और बोला की कुछ तो कर ही लेंगे।
चाय ख़तम हो गयी थी और मैं सामने टंगे कैलेंडर में कृष्ण भगवान को देख के सोच रहा था कि अच्छा हुआ जो उस दिन IIT नहीं निकला।
अच्छा हुआ जो IIT नहीं निकला .....

Tuesday, 20 March 2018

क्या नखरा है यार,

क्या नखरा है यार,

पहले बोले की बात करो,
जो बात करी तो बिगड़ गए।
तो क्यु बोला की बात करो,
मैनें कब बोला मुकर गए।

फिर खुद ही बोला साथ चलो,
जो साथ चला तो पिछड़ गए।
फिर थक के बोलें रूको जरा,
मैं 'अच्छा' बोला, अकड़ गए।

क्या नखरा है यार.... 😀

#PiyushMishra