एप्पल के सहसंस्थापक स्टीव जॉब्स की कल चौथी पुण्यतिथि थी । जॉब्स का निधन 5 अक्टूबर 2011 को हुआ था। अपनी इनोवेशन और दूरदर्शिता को लेकर जॉब्स हमेशा से प्रसिद्ध रहे हैं।
स्टीव जॉब्स ना सिर्फ एक अच्छे लीडर थे बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। जमीन से उठकर आसमान तक पहुंचने वालों की लिस्ट में स्टीव जॉब्स का नाम है। आज उनकी पुण्यतिथी पर हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसी बातों के बारे में जो स्टीव जॉब्स की जिंदगी से सीखी जा सकती हैं।
1. अपने लिए अच्छे शिक्षक तलाशिए-
स्टीव जॉब्स ना सिर्फ जीनियस थे बल्कि वो हमेशा उन लोगों की तलाश में रहते थे जिनसे वो कुछ ना कुछ सीख सकें। जॉब्स के कुछ पहले टीचर्स में से एक रेजिस मैक्कैना (Regis McKenna) थे जो सिलिकॉन वैली में एक मार्केटर थे। रेजिस ही वो इंसान हैं जिन्होंने गैराज में चल रही एप्पल कंपनी के लिए पहले इन्वेस्टर का इंतजाम किया था। ये इन्वेस्टर थे माइक मार्कुला जो एप्पल के मार्केटिंग गुरू बने। स्टीव जॉब्स का सिद्धांत था कि जिस्से जो सीख सको सीख लो।
कोई कमी ना रह जाए-
स्टीव जॉब्स जानते थे की प्रोडक्ट की खूबियों के साथ पैकेजिंग भी बहुत जरूरी है। वे जानते थे कि लोग किसी भी उत्पाद या कंपनी को लेकर अपनी राय उस प्रोडक्ट या कंपनी की प्रस्तुति या पैकेजिंग के आधार पर बनाते हैं। जॉब्स कहते थे कि माइक ने मुझे सिखा दिया था कि लोग किसी पुस्तक को उसके कवर से ही सही या गलत समझने लगते हैं। जब वे मेकिनटोश की 1984 में शिपिंग करा रहे थे तो वे उसके बॉक्स के कलर और डिजाइन पर मोहित हो गए थे। इस बात से हम ये सीख सकते हैं कि किसी भी काम में कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए। चाहें वो शुरुआत में हो या अंत में।
हार से कभी ना डरें-
स्टीव जॉब्स ने अपनी जिंदगी में जितनी सफलता देखी उतनी ही हार भी। 30 साल की उम्र में जॉब्स को उन्हीं की बनाई गई कंपनी से निकाल दिया गया था। एप्पल कंपनी ने भी अपनी सबसे ज्यादा असफलता स्टीव जॉब्स के कार्यकाल में ही देखी। मौत से 8 साल पहले ही उन्हें कैंसर का पता चला था। स्टीव जॉब्स ने इसे भी दिलेरी से स्वीकार किया और अपने जीवन को भरपूर जिया। इस बात से हम सीख सकते हैं कि जिंदगी में चाहें कुछ भी हो जाए हार नहीं माननी चाहिए।
अपने निर्णय पर रहें अडिग-
जॉब्स ने 1984 में मैकिनटोश कम्प्यूटर के लिए एक एडवर्टिजमेंट बनवाया था। वो शो बिजनेस के इतने दीवाने थे कि उन्होंने इस एडवर्टिजमेंट को बनाने के लिए एलियन और ब्लेड रनर फिल्म के डायरेक्टर रैड्ली स्कॉट को चुना था। इस 60 सेकंड के कमर्शियल को बनवाने में जॉब्स ने $900,000 (55395000 रुपए) खर्च कर दिए थे। इसके बाद उस ऐड को सुपर बॉल गेम के दौरान चलाने के लिए $800,000 (49240000 रुपए और खर्च किए थे)। इस ऐड को बोर्ड ने पसंद नहीं किया था फिर भी ये ऐड चला और जॉब्स ने अपनी जिद पूरी की। इससे हम ये बात सीख सकते हैं कि चाहें जो भी निर्णय लिया गया हो उसपर हमेशा चलें और पीछे ना हटें।
हमेशा एक दुश्मन की तलाश-
स्टीव जॉब्स ने हमेशा अपने प्रतिद्वंद्वियों को अपना दुश्मन माना है। एप्पल के लिए IBM, माइक्रोसॉफ्ट के बाद एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम बनाने वाला गूगल भी एक बड़ा प्रतिद्वंद्वी था। स्टीव जॉब्स हमेशा अपने लिए नया दुश्मन तलाशते थे। उनका मानना था कि दुश्मन बनाना खतरनाक तो हो सकता है, लेकिन ये ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है।
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