Wednesday, 29 October 2014

Admit card of SSC Combined Higher Secondary Level (10+2) examination 2014

Admit Card / Hall Ticket Download SSC CHSL Examination 2014

The last date of applying SSC LDC DEO  notice has ended. Now download the admit card/hall ticket which allow you to appear in SSC CHSL 2014 various exam exam center.

knowledge sakar to tell candidates how to check application status of SSC CHSL and hall ticket for 991 post of LDC (Lower division Clerk) and 1006 post of DEO (Data Entry Operators). Here below the steps to download admit card for SSC CHSL admit card for LDC DEO examination 2014.

Finally the wait has over applicant can get their SSC CHSL 2014 admit card for LDC DEO examination region wise, Applicant are to visit following region wise official website of ssc and enter your registration ID ad date of birth.

    The date of examination will be on 02 November and 09 November 2014.

How to check LDC DEO application status (SSC CHSL 2014)

Example;

    Enter you Registration-Id : 25485678
    Date of Birth :24-11-1993
    then click on submit

Date of examination for SSC CHSL 2014 for LDC DEO

    Exam will be held between  02 November and 09 November 2014.

Below you can see the old notification….

SSC LDC DEO Recruitment 2014:  Staff Selection Commission (SSC) has given its employment notification for the July month. SSC 1006 vacancies of Data Entry Operators and 991 vacancies of Lower division Clerk.  SSC LDC (Lower division Clerk) and DEO (Data Entry Operators) issue always every year conduct the exam of 1997 Vacancies in various department in India. This is great chance for who looking 10+2 Sarkari Naukri and job after 12th pass in SSC. They all can apply before or on 19.08.2014.

All applicants can apply though online applications for the SSC Lower division Clerk and Data Entry Operators post 2014 at the official of SSC www.ssc.nic.in. Get complete notice regarding the latest SSC LDC DEO recruitment i.e. age limit, qualification, selection procedure, pay scale (pay band), how to apply online for the LDC and DEO post, Syllabus & exam pattern for ldc deo written test, examination date, application fees.


SSC CHSL (Combined Higher Secondary Level) examination notification (July 2014)
Organization Name: Staff Selection Commission (SSC)

Jobs Type: Sarkari Naukri

Website: ssconline.nic.in

Post Name: Data Entry Operators and Lower division Clerk (SSC Combined Higher Secondary Level)

No of Vacancy: 1997 posts (LDC DEO of SSC CHSL Test)
click here to downlode Admit card of SSC Combined Higher Secondary Level (10+2) examination 2014




Monday, 20 October 2014

My Story

 

"It was a Saturday afternoon when me, my cousin brother and sister-in-law took an auto from city market to rotighar,gandhibazar. While we were going in the auto, me and my cousin were discussing about an institute that offers engineering degree in two years. I asked my cousin the institute name but he was not really sure about the abbreviation.

He said its called some AIME or something. But the auto driver told the institute was called AMIE. Later he gave us the complete information about the institute, courses offered, number of subjects that were offered in one year etc. I was shocked by the way he told us about the institute. Later he asked about my academics. I told him that I completed my engineering from BMS College of Engineering.

Then he asked me my specialization in particular. I told it was Industrial engineering and Management. Since many people will not be aware about my branch name, it is a routine for me to tell that my branch is related to Mechanical Engineering just that our course includes some MBA subjects as well. I wanted to tell the same to the auto driver.

Before I could complete, he asked me, "Oh IEM ah?". I was stunned. Who would expect an auto-driver to know all this. My mouth could not stop asking questions. I asked him " How do you know all these things?"

He told me that even he was a Mechanical Engineer who did his Diploma in Mechanical engineering, later finished his B.E. in Mechanical Engineering from JSS college of Engineering( one of the very good engineering colleges in Karnataka)two years back.
Thats it. I don't even have words to describe my reaction when he told me this. I was completely shocked!! I asked how come he is doing this job instead of finding other jobs "meant" for engineers.

He told me, " Madam, there are so many people like me in this field. Destiny has made us to settle for this. And we are doing it. Even now, my professor keeps calling and tells me to do MTech. I feel that engineering what I have done is only useless. Why waste another 2 lakhs?"

I told him, "You can pursue Mtech. Then take up a lecturer job".
He told me, " Who pays for my Mtech? And even if I do Mtech I would get 25,000 as my initial salary. I'm getting the same now and I am ok with it. It is a waste if I am doing Mtech".

I could not answer his question. Yes I could make out that he had family commitments that is why he ended up taking up an auto-driver job. Also, I could see the frustration on his face for not getting a job with the qualification he had. I don't think he would have settled for this job without even trying for mechanical engineering jobs. Probably 10-15 years back nobody would have imagined an engineer becoming an auto-driver. Its not the destiny, but the existing job-market has made many engineers to settle for under-employment.
I guess he is a true logical indian who has accepted the fact and moved on in his life.

Story ended by me giving him a free advice to start doing something related to his academics.He nodded with a smile, probably which meant it could never happen!

Making a graduate "employable" is more important than just making a graduate. I hope, at least we may not have to see PGs like this in future."

Submitted

Sunday, 12 October 2014

कुछ पाने की तमन्ना


एक बार किसी रेलवे प्लैटफॉर्म पर जब
गाड़ी रुकी तो एक
लड़का पानी बेचता हुआ निकला। ट्रेन में बैठे एक
सेठ ने उसे आवाज दी, ऐ लड़के, इधर आ।
लड़का दौड़कर आया।
उसने पानी का गिलास भरकर सेठ
की ओर बढ़ाया तो सेठ ने पूछा,
कितने पैसे में? लड़के ने कहा, पच्चीस
पैसे। सेठ ने उससे कहा कि पंदह पैसे में
देगा क्या?
यह सुनकर लड़का हल्की मुस्कान
दबाए पानी वापस घड़े में उड़ेलता हुआ
आगे बढ़ गया।
उसी डिब्बे में एक महात्मा बैठे थे,
जिन्होंने यह नजारा देखा था कि लड़का मुस्कराय मौन रहा।
जरूर कोई रहस्य उसके मन में होगा।
महात्मा नीचे उतरकर उस लड़के के
पीछे- पीछे गए।
बोले : ऐ लड़के, ठहर जरा, यह तो बता तू हंसा क्यों?
वह लड़का बोला, महाराज, मुझे
हंसी इसलिए आई कि सेठजी को प्यास
तो लगी ही नहीं थी।
वे तो केवल
पानी के गिलास का रेट पूछ रहे थे। महात्मा ने पूछा,
लड़के, तुझे ऐसा क्यों लगा कि सेठजी को प्यास
लगी ही नहीं थी।
लड़के ने जवाब दिया, महाराज, जिसे
वाकई प्यास लगी हो वह कभी रेट
नहीं पूछता। वह तो गिलास लेकर पहले
पानी पीता है।
फिर बाद में पूछेगा कि कितने पैसे देने हैं? पहले
कीमत पूछने का अर्थ हुआ कि प्यास
लगी ही नहीं है।
वास्तव में जिन्हें ईश्वर और जीवन में
कुछ पाने की तमन्ना होती है, वे वाद-
विवाद में नहीं पड़ते। पर जिनकी प्यास
सच्ची नहीं होती, वे
ही वाद-विवाद में पड़े रहते हैं। वे साधना के पथ
पर आगे नहीं बढ़ते.
अगर खुदा नहीं हे तो उसका ज़िक्र क्यो??
और अगर खुदा हे तो फिर फिक्र क्यों ???
:
" मंज़िलों से गुमराह भी ,कर देते हैं कुछ लोग ।।
हर
किसी से ,रास्ता पूछना ,अच्छा नहीं होता

अगर कोई पूछे जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया ...
तो बेशक कहना...
खुबसूरत रिश्ता है मेरा और भगवान के बीच में,
ज्यादा मैं मांगता नहीं और कम वो देता नहi

Wednesday, 8 October 2014

समझदार व्यक्ति को हमेशा मालूम रहते हैं इन 6 प्रश्नों के उत्तर


आज के समय में अधिकांश लोगों को धन संबंधी सुख पाने के लिए अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है। फिर भी बहुत ही कम लोग अधिक श्रम के बाद भी पर्याप्त प्रतिफल प्राप्त कर पाते हैं। व्यक्ति को कुछ कामों में तो सफलता मिल जाती है, लेकिन कुछ कामों में असफलता का मुंह भी देखना पड़ता है। यदि आप सफलता का प्रतिशत बढ़ाना चाहते हैं तो यहां एक चाणक्य नीति बताई जा रही है। इस नीति का ध्यान रखेंगे तो आपको अधिकतर कार्यों में सफलता मिल सकती है। हम जब ज्यादा कामों में सफल होंगे तो धन संबंधी लाभ भी मिलेगा और इस प्रकार धन संचय होने लगेगा।
चाणक्य कहते हैं कि-
क: काल: कानि मित्राणि को देश: कौ व्ययागमौ।
कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुंहु:।।
 
यह चाणक्य नीति के चतुर्थ अध्याय का 18वां श्लोक है। इस श्लोक में चाणक्य ने बताया है कि हमें कार्यों में सफलता पाने के लिए किन 6 बातों को हमेशा सोचते रहना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखकर काम करेंगे तो असफलता मिलने की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं।
 
पहली बात: यह समय कैसा है
 
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि वही व्यक्ति समझदार और सफल है, जिसे इस प्रश्न का उत्तर हमेशा मालूम रहता है। समझदार व्यक्ति जानता है कि वर्तमान समय कैसा चल रहा है। अभी सुख के दिन हैं या दुख के। इसी के आधार पर वह कार्य करता हैं। यदि सुख के दिन हैं तो अच्छे कार्य करते रहना चाहिए और यदि दुख के दिन हैं तो अच्छे कामों के साथ धैर्य बनाए रखना चाहिए। दुख के दिनों में धैर्य खोने पर अनर्थ हो सकता है।
दूसरी बात: हमारे मित्र कौन-कौन हैं
 
हमें यह मालूम होना चाहिए कि हमारे सच्चे मित्र कौन-कौन हैं और मित्रों के वेश में शत्रु कौन-कौन हैं। शत्रुओं को तो हम जानते हैं और उनसे बचते हुए ही कार्य करते हैं, लेकिन मित्रों के वेश में छिपे शत्रु का पहचाना बहुत जरूरी है। यदि मित्रों में छिपे शत्रु को नहीं पहचान पाएंगे तो कार्यों में असफलता ही मिलेगी। ऐसे लोगों से भी बचना चाहिए। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखें कि सच्चे मित्र कौन हैं, क्योंकि सच्चे मित्रों की मदद लेने पर ही सफलता मिल सकती है। यदि गलती से मित्र बने हुए शत्रु से मदद मांग ली तो पूरी मेहनत पर पानी फिर सकता है।
तीसरी बात: यह देश कैसा है
 
यह देश कैसा है यानी जहां हम काम करते हैं, वह स्थान, शहर और वहां के हालात कैसे हैं। कार्यस्थल पर काम करने वाले लोग कैसे हैं। इन बातों का ध्यान रखते हुए काम करेंगे तो असफल होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाएंगी।
चौथी बात: हमारी आय और व्यय की सही जानकारी
 
समझदार इंसान वही है तो अपनी आय और व्यय की सही जानकारी रखता है। व्यक्ति को अपनी आय देखकर ही व्यय करना चाहिए। जो लोग आय से अधिक खर्च करते हैं, वे परेशानियों में अवश्य फंसते हैं। अत: धन संबंधी सुख पाने के लिए कभी आय से अधिक व्यय नहीं करना चाहिए। आय से कम खर्च करेंगे तो थोड़ा-थोड़ा ही सही पर धन संचय हो सकता है।
 
पांचवीं बात: मैं किसके अधीन हूं
 
हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारा प्रबंधक, कंपनी, संस्थान या बॉस हमसे क्या चाहता है। हम ठीक वैसे ही काम करें, जिससे संस्थान को लाभ मिलता है। यदि संस्थान को लाभ होगा तो कर्मचारी को भी लाभ मिलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
अंतिम बात: मुझमें कितनी शक्ति है
 
अंतिम बात सबसे जरूरी है, हमें यह मालूम होना चाहिए कि हम क्या-क्या कर सकते हैं। वही काम हाथ में लेना चाहिए, जिसे पूरा करने का सामर्थ्य हमारे पास है। यदि शक्ति से अधिक काम हम हाथ में ले लेंगे तो असफल होना तय है। ऐसी परिस्थिति में कार्य स्थल और समाज में हमारी छबि पर बुरा असर होगा।
 
 
 

Sunday, 5 October 2014

स्टीव जॉब्स की जिंदगी से हम सीख सकते हैं ये 5 बातें


 एप्पल के सहसंस्थापक स्टीव जॉब्स की कल  चौथी पुण्यतिथि थी । जॉब्स का निधन 5 अक्टूबर 2011 को हुआ था। अपनी इनोवेशन और दूरदर्शिता को लेकर जॉब्स हमेशा से प्रसिद्ध रहे हैं। 

स्टीव जॉब्स ना सिर्फ एक अच्छे लीडर थे बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। जमीन से उठकर आसमान तक पहुंचने वालों की लिस्ट में स्टीव जॉब्स का नाम है। आज उनकी पुण्यतिथी पर हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसी बातों के बारे में जो स्टीव जॉब्स की जिंदगी से सीखी जा सकती हैं। 

1. अपने लिए अच्छे शिक्षक तलाशिए-

स्टीव जॉब्स ना सिर्फ जीनियस थे बल्कि वो हमेशा उन लोगों की तलाश में रहते थे जिनसे वो कुछ ना कुछ सीख सकें। जॉब्स के कुछ पहले टीचर्स में से एक रेजिस मैक्कैना (Regis McKenna) थे जो सिलिकॉन वैली में एक मार्केटर थे। रेजिस ही वो इंसान हैं जिन्होंने गैराज में चल रही एप्पल कंपनी के लिए पहले इन्वेस्टर का इंतजाम किया था। ये इन्वेस्टर थे माइक मार्कुला जो एप्पल के मार्केटिंग गुरू बने। स्टीव जॉब्स का सिद्धांत था कि जिस्से जो सीख सको सीख लो। 

कोई कमी ना रह जाए-

स्टीव जॉब्स जानते थे की प्रोडक्ट की खूबियों के साथ पैकेजिंग भी बहुत जरूरी है। वे जानते थे कि लोग किसी भी उत्पाद या कंपनी को लेकर अपनी राय उस प्रोडक्ट या कंपनी की प्रस्तुति या पैकेजिंग के आधार पर बनाते हैं। जॉब्स कहते थे कि माइक ने मुझे सिखा दिया था कि लोग किसी पुस्तक को उसके कवर से ही सही या गलत समझने लगते हैं। जब वे मेकिनटोश की 1984 में शिपिंग करा रहे थे तो वे उसके बॉक्स के कलर और डिजाइन पर मोहित हो गए थे। इस बात से हम ये सीख सकते हैं कि किसी भी काम में कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए। चाहें वो शुरुआत में हो या अंत में। 
हार से कभी ना डरें-

स्टीव जॉब्स ने अपनी जिंदगी में जितनी सफलता देखी उतनी ही हार भी। 30 साल की उम्र में जॉब्स को उन्हीं की बनाई गई कंपनी से निकाल दिया गया था। एप्पल कंपनी ने भी अपनी सबसे ज्यादा असफलता स्टीव जॉब्स के कार्यकाल में ही देखी। मौत से 8 साल पहले ही उन्हें कैंसर का पता चला था। स्टीव जॉब्स ने इसे भी दिलेरी से स्वीकार किया और अपने जीवन को भरपूर जिया। इस बात से हम सीख सकते हैं कि जिंदगी में चाहें कुछ भी हो जाए हार नहीं माननी चाहिए। 
अपने निर्णय पर रहें अडिग-

जॉब्स ने 1984 में मैकिनटोश कम्प्यूटर के लिए एक एडवर्टिजमेंट बनवाया था। वो शो बिजनेस के इतने दीवाने थे कि उन्होंने इस एडवर्टिजमेंट को बनाने के लिए एलियन और ब्लेड रनर फिल्म के डायरेक्टर रैड्ली स्कॉट को चुना था। इस 60 सेकंड के कमर्शियल को बनवाने में जॉब्स ने $900,000 (55395000 रुपए) खर्च कर दिए थे। इसके बाद उस ऐड को सुपर बॉल गेम के दौरान चलाने के लिए $800,000  (49240000 रुपए और खर्च किए थे)। इस ऐड को बोर्ड ने पसंद नहीं किया था फिर भी ये ऐड चला और जॉब्स ने अपनी जिद पूरी की। इससे हम ये बात सीख सकते हैं कि चाहें जो भी निर्णय लिया गया हो उसपर हमेशा चलें और पीछे ना हटें। 
हमेशा एक दुश्मन की तलाश-

स्टीव जॉब्स ने हमेशा अपने प्रतिद्वंद्वियों को अपना दुश्मन माना है। एप्पल के लिए IBM, माइक्रोसॉफ्ट के बाद एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम बनाने वाला गूगल भी एक बड़ा प्रतिद्वंद्वी था। स्टीव जॉब्स हमेशा अपने लिए नया दुश्मन तलाशते थे। उनका मानना था कि दुश्मन बनाना खतरनाक तो हो सकता है, लेकिन ये ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है।

10 important lessons by Father of the Nation Mahatma Gandhi Ji



1.Humanity and faith
Gandhi said: "Have faith in humanity. Humanity is like an ocean; if a few drops of the ocean are dirty, the whole ocean does not become dirty". His faith in the basic 'goodness' of people remained undeterred throughout his life, which remained largely in the midst of followers and opponents.
2.Be the change
While Gandhi turned an unlikely leader of something as massive as a freedom movement, it didn't happen overnight. The man he turned out to be, was a result of constant introspection and clarity that emerged from the process. He remained open to both sides of any argument and faced everything with a smile. No matter what the challenge was, his goal of 'Indian independence' remained clear. Like he said: "Be the change you want to see in the world." And what a change he was!
3.Preserving the self
Gandhi firmly believed he was in control of his emotions. Even during most disturbing occasions when an argument went awry with his supporters, or his friends, he would quietly retreat and revisit the discussion after having thought through. His friends vouched for this quality of his. He ensured the goal was in sight. And that ego wouldn't rule the roost. He often said: "no one can hurt me without my permission".
4.Forgive
He had imbibed the best of Indian philosophy. Non-violence was his strongest weapon, and so was forgiveness. He told the world often that forgiving was the quality of the strong, and not the weak. He didn't approve of those who wanted to avenge any injustice or crime. "An eye for an eye makes the whole world blind" he said and liberated his fellow men from anger.
5.Practice what you preach
Advice is more easily available land or air today. Even a stranger is capable of telling a fellow passenger how to lead a life that the former may have never known. But, Gandhi firmly believed actions speak louder than words. He remained in control of both his actions and words. "An ounce of practice is worth a thousand words" is what he lived by.
6.Now is all that you have
An English adage says 'cross the bridge when it comes'. Gandhi lived by the essence of 'today' and not what fate would befall on him tomorrow. With the goal clearly before him, he would often look at what could be done now, than later. "God has given me no control over the following moment. I am concerned about taking care of the present" was his opinion.
7.Never say Never
He was well aware of the possibilities and limitations of human beings. He was magnanimous about all the people who came to him confessing their errors. He said once "It is unwise to be too sure of one's own wisdom. It is healthy to be reminded that the strongest might weaken and the wisest might err."
8.Stay on; don't give up
Challenges often encouraged him to go that extra mile, put in that extra effort and reach further clarity on how things were to be executed for the goal to be reached. Self-doubt often made him stronger and he came back renewed, rejuvenated and with bigger dreams than before for the country. "First they ignore you, then they laugh at you, then they fight you, then you win" he would say when asked if the challenges didn't bog him down.
9.Keep away the evil
Look for best qualities in people and grow with every person you meet. Taking stock of someone's lacunae will only make you poorer. Gandhi was aware that he wasn't faultless himself. "I will not probe into the faults of others. I only look for goodness in them" he reiterated often.
10.Coherence in thought and action
Happiness is where there is no conflict within self about what is preached and followed. There are no different rules for self and the world. Happiness is when your thoughts, actions and words align - this was something that he firmly believed in all his life.